Madhu varma

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लेखनी कविता -बीम-ए-रक़ीब से नहीं करते विदा-ए-होश - ग़ालिब

बीम-ए-रक़ीब से नहीं करते विदा-ए-होश / ग़ालिब


बीम-ए-रक़ीब से नहीं करते विदा-ए-होश
मजबूर याँ तलक हुए ऐ इख़्तियार हैफ़
 
जलता है दिल कि क्यूँ न हम इक बार जल गए
ऐ ना-तमामी-ए-नफ़स-ए-शोला-बार हैफ़

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